क्यूंकि आँखों में इतना गुस्सा तेरी वजह से है...
जो भी रोंगवा है उसे, सेट राईटवा करो जी नाही लूजिये जी होप, थोड़ा फाईटवा करो जी I |
तुम मेरे सिगरेट छोड़ने की शर्त रखती थी,
और मैं तुम्हारे बालों के पफ न बनाने की,
क्यूंकि वो खुले ही अछे लगते थे,
मुझे भी और पुरे कॉलेज को भी
लेकिन तुमको पता है ?
पता तो है ही कि हमको गैंग्स ऑफ़ वास्सेपुर कितना पसंद है,
और कितना शिद्दत से चाहते थे कि कोई हमारे लिए
"तार बीजली से पतले हमारे पिया", गाये,
हमारा फैज़ल होना, तुम्हारा मोहसिना होना,
और बैकग्राउंड में, सइयां का काला होना,
बस इतनी सी तो ख्वाइश थी, लेकिन नहीं
ऐसे कैसे,
ऐसे कैसे ख्वाइशें पूरी होने लगीं?
उनका भी अपना ईगो है,
फेनटिसी से उसका नखरा छीन लें तो, घंटा फेनटिसी
इस बार दिवाली में जब घर से आ रहे थे,
तो अम्मा हमको हज़ार-हज़ार का तीन नोट दी थी,
बड़ा खुश थे हम, एक कुर्ता, दो टीशर्ट आदि का प्लानिंग तो कर लिए थे
,
लेकिन, तभी तुम्हारा मोदी, नोटबंदी ले आया था
और तुमने अपने सो कॉल्ड बेस्ट फ्रेंड के साथ
पाउट वाली डीपी लगायी थी,
"विथ माई बै" वाले लाइन के साथ
और इसीलिए आँखों में इतना गुस्सा तेरी वजह से है,
दरअसल, गुस्सा इसलिए भी है कि
हमारी मोहसिना खातून, पंडित है
और हम नही हैं, पंडित
और मोहसिना बोलती है की ये तो गड़बड़ है,
पापा विल नेवर अलाऊ दिस.
अब बताइये, जब विरोध नहीं, विद्रोह नहीं,
जब नही हुयी बगावत.
तो क्या ख़ाक किये मोहब्बत,
अरे आने वाली नस्लों को क्या स्टोरी सुनायेंगे,
इसीलिए हमको अम्बेडकर इतने अच्छे लगते हैं,
क्यूंकि वो मोहब्बत के बैरिएर को तोड़ने की बात करते हैं,
क्यूंकि वो जाति को तोड़ने की बात करते हैं,
और तुम नही करती,
इसलिए आँखों में गुस्सा तुम्हारी वजह से है.
देखो तुमको सच सच बताएं,?
कोई गुस्सा-वुस्सा नही है,
वो जो रात रात भर तुमसे चैटिंग चैटिंग खेले हैं,
उस की वजह से, नंबर लग गया है हमको,
वही कुछ आँखों में खटकता है,
और हमको वो गुस्सा लगता है
- गौरव प्रकाश शाह