Tuesday 21 March 2017

क्यूंकि आँखों में इतना गुस्सा तेरी वजह से है...




क्यूंकि आँखों में इतना गुस्सा तेरी वजह से है...





जो भी रोंगवा है उसे, सेट राईटवा करो जी
नाही लूजिये जी होप, थोड़ा फाईटवा करो जी I
हम मोहब्बत में कितने शर्तिया हो जाते थे न,
तुम मेरे सिगरेट छोड़ने की शर्त रखती थी,
और मैं तुम्हारे बालों के पफ न बनाने की,
क्यूंकि वो खुले ही अछे लगते थे,
मुझे भी और पुरे कॉलेज को भी

लेकिन तुमको पता है ?
पता तो है ही कि हमको गैंग्स ऑफ़ वास्सेपुर कितना पसंद है,
और कितना शिद्दत से चाहते थे कि कोई हमारे लिए
"तार बीजली से पतले हमारे पिया", गाये,

हमारा फैज़ल होना, तुम्हारा मोहसिना होना,
और बैकग्राउंड में, सइयां का काला होना,
बस इतनी सी तो ख्वाइश थी, लेकिन नहीं
ऐसे कैसे,
ऐसे कैसे ख्वाइशें पूरी होने लगीं?
उनका भी अपना ईगो है,
फेनटिसी से उसका नखरा छीन लें तो, घंटा फेनटिसी

इस बार दिवाली में जब घर से आ रहे थे,
तो अम्मा हमको हज़ार-हज़ार  का तीन नोट दी थी,
बड़ा खुश थे हम, एक कुर्ता, दो टीशर्ट आदि का प्लानिंग तो कर लिए थे
,

लेकिन, तभी तुम्हारा मोदी, नोटबंदी ले आया था
और तुमने अपने सो कॉल्ड बेस्ट फ्रेंड के साथ
पाउट वाली डीपी लगायी थी,
"विथ माई बै" वाले लाइन के साथ

और इसीलिए आँखों में इतना गुस्सा तेरी वजह से है,


दरअसल, गुस्सा इसलिए भी है कि
हमारी मोहसिना खातून, पंडित है
और हम नही हैं, पंडित
और मोहसिना बोलती है की ये तो गड़बड़ है,
पापा विल नेवर अलाऊ दिस.

अब बताइये, जब विरोध नहीं, विद्रोह नहीं,
जब नही हुयी बगावत.

तो क्या  ख़ाक किये मोहब्बत,
अरे आने वाली नस्लों को क्या स्टोरी सुनायेंगे,

इसीलिए हमको अम्बेडकर इतने अच्छे लगते हैं,
क्यूंकि वो मोहब्बत के बैरिएर को तोड़ने की बात करते हैं,
क्यूंकि वो जाति को तोड़ने की बात करते हैं,
और तुम नही करती,

इसलिए आँखों में गुस्सा तुम्हारी वजह से है.


देखो तुमको सच सच बताएं,?
कोई गुस्सा-वुस्सा नही है,

वो जो रात रात भर तुमसे चैटिंग चैटिंग खेले हैं,
उस की वजह से, नंबर लग गया है हमको,
वही कुछ आँखों में खटकता है,
और हमको वो गुस्सा लगता है 




- गौरव प्रकाश शाह 

Saturday 11 March 2017

क्यूंकि नशे में कोई झूठ नही बोलता







शराब सा हिसाब होने दो,
पहले मोहब्बत होने दो, फिर इन्कलाब होने दो I
क्यूंकि नशे में कोई

झूठ नहीं  बोलता...






उस कल,उस पल, उस मोहब्बत के लिए

चलो न एक करार करते हैं, 
थोडा सा प्यार करते हैं .

आज एक अरसे बाद तुमसे बात करने में बिलकुल वैसा ही लग रहा था,
जैसे कि कोई परदेशी एक अरसे बाद वापस गाँव आया हो, 
और बड़ी बेशब्री से इधर उधर ताकता है, कि कोई  उसे पहचान ले 
या कोई उसकी पहचान का दिख जाये  
लेकिन उसकी निराशा के लिए ऐसा बिलकुल नही हुआ,
न तो कोई उसकी पहचान का दिखा, ना ही किसी ने उसे पहचाना 

तुमसे बतियाना बिलकुल वैसा ही है, 
हम बदल चुके हैं,  या बदल जाने की एक्टिंग तो अच्छी ही कर ले रहे हैं, 
तुम्हे भी पता है की क्या क्या भूल जाना है,
मुझे भी तकाज़ा है की क्या याद नही रखना

तो चलो न एक करार करते हैं ,
उस कल, उस पल, उस मोहब्बत के खातिर 
थोडा सा प्यार करते हैं .

हम उन शामो की बात नही करेंगे जब हम VC ऑफिस में स्लो मोशन में वाक करते थे,
मैं सीधे पांव और तुम उलटे पांव चलती थी,
और मेरी किसी थर्ड क्लास शायरी पर मुह फाड़ के हंस देती थी,
हम इस बात का भी ज़िक्र नही करेंगे की कैसे तुम्हे रोड क्रॉस करने में डर लगता है,
और तुम्हारा ये डर हमे और करीब ले आता, 
जब तुम मेरा हाथ पकडती थी रोड के उस पार तक 

इस बात का भी ज़िक्र नही होगा की कैसे हम घंटो मोदी के बारे में बात करते थे,
मैं हमेशा की तरह उसके खिलाफ और तुम उसके समर्थन में, पुरजोर समर्थन में.
नोटबंदी के दौर में भी  

तो चलो न एक करार करते हैं,
उस कल, उस पल , उस मोहब्बत के लिए 
थोडा सा प्यार करते हैं.

तुम कहती थी न, दुनिया के लिए मैं जितनी शरीफ हूँ, ज़रीन हूँ ,
तुम्हारे लिए उतना ही बिगड़ने का मन करता है, 
की कैसे तुमने मुझे अपनी बनावट के एक एक बारीकियां बताई थी,
जिसकी गवाही हमारी परम्पराएं नही देती,
परंपरा से याद आया, तुम्हे वो बजरंगदल और वैलेंटाइन्स की डिबेट तो याद ही होगी हमारी,
तुम कहती थी, प्यार करते हैं चोरी थोड़ी, जो छुप छुप करें, 
मैं कहता था, प्यार दर्शन की चीज़ हैं, प्रदर्शन की नही,
फिर तुम मुझे डरपोक,फट्टू जाने क्या क्या बोलती थी,
वो सब भूल गया हूँ मैं, तुम भी याद मत रखना 
हम इस पर भी बात नही करेंगे

लेकिन उन तमाम जस्बातों, उन एहसासों, उस मोहब्बत के खातिर 
चलो न एक करार करते हैं, 
थोडा सा प्यार करते हैं. 


अस्सी घाट की झुमके वाली वो दूकान, जहाँ मेरी तुम्हे झुमका दिलाने की जिद ले गयी थी,
वहां तुमने झुमका पहनते वक्त कैसे अपने कान आगे करके बोला था कि, 
तुम ही पहना दो.
वो, जब मैं तुम्हारे कानों में झुमका डाल रहा था, और तुम आईने में देख के बोली थी,
हम साथ में कितने अच्छे लगते हैं न

देखो ऐसा है की , तुम्हरी यादें भोर में कम्बल की नर्म गर्माहट सी हैं,
जिन्हें छोड़ने का मन तो नही करता, लेकिन छोड़े बिना काम भी नही चलता.
तुम अलसाई आँखों के ख्वाब सी हो, 
जिसे पूरा करने की जिद भी होती है,
और इसका भी तकाज़ा होता कि, ऐसा हो नही सकता.

तो चलो हम थोड़ी देर के लिए एक करार करते हैं,
थोडा सा प्यार करते हैं 



- गौरव प्रकाश शाह